2G स्पेक्ट्रम घोटाला – इस घोटाला से सरकारी खजाने को 1 लाख 76 हजार करोड़ रुपयों का नुकसान हुआ था।
2 G घोटाला साल 2010 में प्रकाश में आया जब भारत के महालेखाकार और नियंत्रक ने अपनी एक रिपोर्ट में साल 2008 में किये गए स्पेक्ट्रम आवंटन पर सवाल खड़े किए।
2G घोटाला को स्वतंत्र भारत के इतिहास का दूसरा सबसे बड़ा घोटाला माना जाता है। यह पूरा मामला एक बार फिर से जीवंत हो गया है, क्योंकि आज CBI कोर्ट इस मामले में अपना फैसला सुनाने वाला है। इस तरह 7 साल बाद 7 नवंबर को देश को पता चलेगा कि इतने बड़े घोटाला के आरोपियों को क्या सजा होगी।
2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले में कंपनियों को नीलामी की बजाए पहले आओ और पाओ की नीति पर लाइसेंस दिए गए थे। ये लाइसेंस अयोग्य आवेदकों को मनमाने तरीके से दिए गए थे। जिसमें भारत के महालेखाकार और नियंत्रक के अनुसार सरकारी खजाने को 1 लाख 76 हजार करोड़ रुपयों का नुकसान हुआ था।
आरोप था कि अगर लाइसेंस नीलामी के आधार पर होते तो खजाने को कम से कम 1 लाख 76 हजार करोड़ रुपयों और प्राप्त हो सकते थे।
ये मामला एक बड़ा राजनीतिक विवाद बन गया था और मामले पर देश के सर्वोच्च न्यायालय में याचिका भी दाखिल किया गया था जिस पर आज यानी 7 नवंबर को फैसला आ सकता है।
आरोप जानने से पहले ये जान लें- क्या होता है स्पेक्ट्रम और 2G,3G,4G ?
स्पेक्ट्रम क्या है?
मोबाइल फ़ोन आने से पहले देश में पहले ‘ स्पेक्ट्रम ‘ शब्द का इस्तेमाल इंद्रधनुष के रंगों के लिए ही किया जाता था। स्पेक्ट्रम से हमारा सामना प्रतिदिन होता है, फिर चाहे वह टीवी का रिमोट हो या माइक्रोवेव ओवन या फिर धूप।
स्पेक्ट्रम, ‘ इलेक्ट्रोमैग्नेटिक स्पेक्ट्रम ‘ का लघु रूप है। स्पेक्ट्रम उस विकिरण ऊर्जा को कहते हैं, जो पृथ्वी को घेरे रहती है। इस इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन ( ईएमआर ) का मुख्य स्रोत सूर्य है। साथ ही, यह ऊर्जा तारों और आकाशगंगाओं से तथा पृथ्वी के नीचे दबे रेडियोएक्टिव तत्वों से भी मिलती है।
2G – 3G – 4G क्या है ?
ये सभी मोबाइल फ़ोन में तकनीकी विकास के अलग-अलग चरण हैं।
- 1 जी के एनालॉग वायरलेस की शुरुआत 1980 के दशक में हुई थी , जिसका इस्तेमाल कार फ़ोन में होता था।
- 2 जी 1990 के दशक में GSM को अपने साथ लेकर आया और CDMA भी आया।
- 3 जी 2008 मे भारत मे शुरू हुआ और इसमें डेटा का हस्तांतरण तेजी से होता है और नेटवर्क भी अच्छा रहता है।
- 4 जी अब देश मे आ चुका है। इसमें वॉयस कॉलिंग साफ होने के साथ-साथ इंटरनेट की स्पीड 3 जी के मुकाबले कई गुना बढ़ गयी है।
अब जानें क्या है आरोप
देश के घोटालों के लंबे इतिहास में सबसे बड़ा बताये जाने वाले इस मामले में प्रधानमंत्री कार्यालय और उस वक़्त के तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम पर भी सवाल उठाए गए थे।
इस मामले में ए राजा के अलावा मुख्य जांच एजेंसी CBI ने सीधे-सीधे कई बड़ी और हस्तियों और कंपनियों पर आरोप लगाए गए थे।
CAG के आरोप हैं कि तत्कालीन मिनिस्टर ए राजा ने ऑक्शन प्रक्रिया में इससे जुड़े नियमो और योग्यता संबंधी मानकों को कई दफा बदला। यहाँ तक कि ऑक्शन की कट-ऑफ तारीख भी मिनिस्ट्री द्वारा बढ़ा दी गई।मिनिस्ट्री ने पहले आओ पहले पाओ के आधार पर लाइसेंस 2008 की कीमतों पर नहीं बल्कि 2001 की कीमतों पर बाटें। आरोप यह भी है कि राजा ने टेलीकॉम रेगुलेटर ट्राई, कानून और वित्त मंत्रालय की सलाह को भी नही माना।
पूर्व दूर संचार मंत्री राजा को करीब 15 महीनों तक जेल में रहने के बाद जमानत दी गई। तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री एम करुणानिधि की बेटी कनिमोझी को भी इस मामले में जेल जाना पड़ा था, क्योंकि जिस कलाइग्नर तरीके से 200 करोड़ डलवाये थे, उसमे कनिमोझी की बड़ी हिस्सेदारी थी।
घोटाले के अन्य मुख्य आरोपी यूनिटेक के प्रमुख संजय चंद्रा और डीबी रियलिटी के संस्थापक विनोद गोयनका भी फर्जीवाड़े और षड्यंत्र के आरोपी हैं। अनिल अंबानी की कंपनी डीएजी के तीन सीनियर एग्जीक्यूटिव – गौतम दोषी, हरि नायर और सुरेंद्र पीपारा के साथ पूर्व टेलीकॉम सेक्रेटरी सिद्धार्थ बेहुरा और राजा के पर्सनल सेक्रेटरी आर के चंदोलिया भी इस मामले में आरोपी हैं।
ईस 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले से भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि को भी नुकसान पहुंचा।